hum hia jee

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Saturday, February 6, 2010

चेन खिच गई

चेन खिच गई
व्यंग्य-शिवेन्दु राय

एक बार मेरे मोबाइल का नेटवर्क किन्हीं दूसरे मोबाइलों के नेटवर्क से गुथ गया। जो चर्चा सुनाई दी वह हुबहू पेश है:-
‘‘ऐ जी, सुनो जी, आज मेरी भी खिच गई !’’
‘‘तुमसे कितनी बार कहा है कि ऊँची हिल की सैंडल मत पहना करो, सुनती ही नहीं हो!’’
‘‘ऊँची हिल की कहाँ पहनी, स्लीपर पहनी हुई थी टायलेट वाली!’’
‘‘मैंने यह भी कितनी बार कहा है कि फालतू इधर-उधर मत भटका करो!’’
‘‘मैं कहाँ इधर-उधर भटकी, अब क्या घर के सामने भी ना टहलूँ ?’’
‘‘घर के सामने ऊबड़-खाबड़ गढ्ढों में टहलोगी तो खिचेगी ही।’’
‘‘कोई नहीं, सरला भैंजी के घर के सामने बढ़िया चिकना सीमेंट कांक्रीट रोड़ है, उनकी तो उसपर भी खिच गई!’’
‘‘वो भी ऊँची हिल की सैंडल पहनती होंगी!’’
‘‘नहीं, वे तो बेचारी नंगे पॉव मंदिर जा रहीं थी तब खिच गई उनकी तो।’’
‘‘क्या ज़रूरत थी जाने की जब पता है कि मंदिर की सीढ़िया बहुत खराब और टूटी फूटी हैं!’’
‘‘उससे क्या होता है, विमला भैंजी की तो शॉपिंग मॉल की सीढ़ियों पर खिची थी!’’
‘‘तुम सब औरतों की यही आदत होती है, फालतू यहाँ-वहाँ भटकती फिरती हो फिर खिंच जाती है तो रोने बैठ जाती हो।’’
‘‘फालतू बातें मत करो, कुछ कर सकते हो तो करो।’’
‘‘अब मैं यहाँ बैठे-बैठे मोबाइल से क्या करूँ ? घर पर होता तो मूव मल देता!’’
‘‘मूव मलने से क्या चेन वापस मिल जाती ?’’
‘‘चैन मिल जाता है, हिन्दी भी ठीक से नहीं बोल सकती!’’
‘‘अरे मैं चेन की बात कर रही हूँ, चेन खिच गई मेरी!’’
‘‘क्या ? चेन खिच गई ? बता क्यों नहीं रही हो इतनी देर से! मैं समझ रहा था पॉव की नस खिच गई है तुम्हारी!’’
‘‘तुम तो यूँ ही हरकुछ-हरकुछ समझ लेते हो! अब तो कुछ करो!’’
‘‘पहले बताओ कब गई, कैसे गई, कौन सी गई.......!’’
‘‘अरे बताया तो सुबह-सुबह पपी को बाहर सुसु करा रही थी, एक छोकरे ने आपका पता पूछा और गले से आधी चेन खीच कर भाग गया!’’
‘‘आधी क्यों ? पूरी नहीं चाहिए थी क्या उसको ?’’
‘‘आधी मेरे पास रह गई!’’
‘‘कौन सी गई दस तोले वाली कि बीस तोले वाली ?’’
‘‘तौली तो थी नहीं कभी.....!’’
‘‘ऐसे कैसे नहीं तौली, फालतू बात करती हो। बिना तौले कहीं चेन मिलती है!’’
‘‘ये तो पता नहीं, तुम्ही ने लाकर दी थी!’’
‘‘बताओ कैसा था छोटा, लम्बा, ठिगना, मोटा, गोरा, काला, मोटर साइकिल कैसी थी, काली, सफेद, लाल, पीली, बताओं मुझे, अभी फोन खड़काता हूँ। पूरा प्रशासन हिलाकर रख दूँगा। मजाल है, एक पुलिस अफसर की बीवी की चेन खिच जाए!’’
‘‘भूल रहे हो, अब तुम रिटायर हो गए हो!’’
‘‘तो क्या हुआ ?’’
‘‘तुम कुछ हिला-हिलू नहीं सकते। जैसे आम आदमी की बीवी की खिचती है वैसी तुम्हारी बीवी की खिंच गई।’’
‘‘तेल लेने गया आम आदमी, तुम तो बताओ वह मोटी वाली गई कि उससे पतली वाली कि उससे पतली वाली कि एकदम पतली वाली ?’’
‘‘अरे आहां, मेरे पिछले बर्डे पर तुम खरीद कर लाए थे ना वो चपटी वाली, वही थी!’’
‘‘चपटी वाली !’’
‘‘हा वही चपटी वाली।’’
‘‘अच्छा...........वोऽऽऽऽऽह, वो चपटी वाली.........’’
‘‘हाँ वही, वो जो मुझे पटाने के लिए तुमने गिफ्ट में दी थी!’’
‘‘हाँ हाँ याद है....... आधी बच गई ना..... चलो जाने दो.....क्या करना है!’’
‘‘करना क्या है, पुलिस में रिपोर्ट डालना है और क्या! ’’
‘‘अरे छोड़ो, क्या करना है, सब बदमाश है साले वहाँ आजकल !’’
‘‘अरे वाह, करना क्यों नहीं है, हराम की थी क्या!’’
‘‘ऊँहू...... वह बात नहीं है, जाने दो......कौन पुलिस के झँझट में पड़े!’’
‘‘अरे क्यों जाने दो........! तुम तो एफ.आई.आर. लिखवाओ।’’
‘‘अरे क्या करना है, आधी ही तो गई है, जाने दो!’’
‘‘ऐसे कैसे जाने दो, चोर के बाप का माल है क्या ?’’
‘‘अरे अब छोड़ो भी तुम्हें दूसरी ला देंगे।’’
‘‘अरे दूसरी भी ले लूँगी, पर इसे भी नहीं छोडूँगी!’’
‘‘अरे जाने भी दो, ऐसी ही थी बेकार!’’
‘‘क्यों बेकार क्यों, तेइस कैरट शुद्ध सोने की चेन थी मेरी वो, मैं तो नहीं छोड़ने वाली!’’
‘‘अरे कह तो दिया बेकार थी, लगी हो जबरन फकर-फकर करने! दस रुपल्ली में हर माल वालों से खरीदी थी, सौ आने शुद्ध नकली चेन थी, हाँ नहीं तो !’’
‘‘क्या कहा ? बेईमान कहीं के, धोकेबाज़! सारे पुलिस वाले ऐसे ही होते है, धोकेबाज़। तुमने शादी भी मेरे माँ-बाप को धोका देकर की! बच्चे भी धोका देकर पैदा कर लिए। घर आओ आज तुम......बताती हूँ। नकली चेन के बदले ना तुम्हें असली जूतों का स्वाद चखाया तो मेरा नाम नहीं!’’
दोनों मोबाइल बंद हो गए। उसके बाद कौन जाने क्या हुआ।

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