hum hia jee

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Sunday, September 5, 2010

मैना की कहानी हो जाएगी पुरानी !



पहाड़ी मैना अब शायद किस्से कहानियों में ही सिमटकर रह जाएगी. नक्सलवाद और सुरक्षाबलों के बीच चल रहे युद्ध में अगर कोई ख़त्म हो रहा है तो वो है मैना.

बारूदी सुरंगों के विस्फोट की आवाजें, बंदूकों की तडतड़ाहट के बीच छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग की एक बड़ी प्यारी आवाज़ ग़ायब होती जा रही है.

यह आवाज़ है बस्तर की मैना की, जो दक्षिण छत्तीसगढ़ के इलाक़े में बड़ी संख्या में पाई जाती है. लेकिन क़रीब एक दशक से इस इलाक़े में पनप रहे नक्सलवाद, माओवादी छापामारों और सुरक्षा बलों के बीच चल रहे युद्ध की वजह से यह इलाक़ा पूरी तरह अशांत हो गया है.

इस अशांति का असर बस्तर के जंगलों पर भी पड़ा है. चाहे यहाँ राष्ट्रीय उद्यान हों या फिर इस क्षेत्र में रहने वाले लोग, पशु हों या पक्षी, सभी की जीवन बेचैन हो गया है.

यहां की बदलती हुई आब-ओ-हवा के कारण इस प्यारी सी चिड़िया ने प्रजनन करना लगभग बंद ही कर दिया है. यही वजह है कि इनकी आबादी दिन ब दिन घटती ही जा रही है.

बस्तर की मैना छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी है इसलिए अब सरकार ने इसे संरक्षित करने के लिए एक कार्य योजना बनाई है. हालांकि संरक्षण का काम कई सालों से चल रहा था लेकिन इसके परिणाम वैसे नहीं आए जैसी उम्मीद की जा रही थी.

बस्तर के ज़िला मुख्यालय जगदलपुर के पास स्थित वन विद्यालय में पचास फीट लंबा और उतना ही चौड़ा एक विशालकाय पिंजरा है जिसमें दो मेहमान रहते हैं. एक है पायल और दूसरी नंदी.

पायल और नंदी का सारा वक़्त उनसे मिलने आए लोगों का मनोरंजन करने में ही बीत जाता है. बस्तर की मैना कि ख़ास बात है कि थोड़े से प्रशिक्षण के बाद वो बिलकुल इंसानों की आवाज़ की हू-ब-हू नक़ल कर सकती है.

पायल और नंदी के प्रशिक्षक हेमंत बेहेरा ने पायल को ख़ूब अच्छी बातें सिखाई हैं. मसलन, जैसे ही कोई पिंजरे के पास पहुँचता है तो एक इंसानी आवाज़ आती है जो कहती है "साहब नमस्ते".

इंसान जैसी आवाज़ अचानक चिड़िया के कंठ से किसी को भी चौंका देती है. कुछ देर बाद ये मैना फिर बोलती है, इस बार शब्द होते हैं "सीता राम. सीता राम. इतना ही नहीं, एक अच्छे दोस्त की तरह पूछती है "खाना खाए?"

इन दोनों मैनाओं को जंगलों से लाकर इस बड़े से पिंजरे में रखा गया है ताकि इनका संरक्षित प्रजनन हो सके. मगर इन कोशिशों के बावजूद पिछले दस सालों में कोई सफलता हासिल नहीं हो पाई है.

क्यों हो रही हैं ग़ायब?
आख़िर इसका क्या कारण है. बस्तर के वन संरक्षक अरुण पांडे कहते हैं, " बस्तर की मैना एक शर्मीली चिड़िया है जो सिर्फ़ बहुत ऊँचे पेड़ों पर रहना पसंद करती है. यह मैना शायद ही कभी नीचे आती है."

बस्तर की मैना की दूसरी बड़ी ख़ासियत है उसकी अपने साथी के लिए वफादारी. जिस साथी से एक बार प्रजनन किया फिर वो कभी दूसरे साथी के साथ प्रजनन नहीं कर सकती. अरुण पांडे के अनुसार इनकी घटती आबादी का एक ये भी बड़ा कारण है.

पिछले 15 सालों में जगदलपुर वन विद्यालय के पिंजरे में किसी मैना ने कोई अंडा तक नहीं दिया है जबकि पायल नाम की मैना नौ साल की है और नंदी तीन साल की.

वहीं राज्य के वन मंत्री विक्रम उसेंडी का कहना है कि बस्तर कि मैना को संरक्षित करने के लिए अब थाईलैंड के राम्खन हेम यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान के विशेषज्ञों से मदद मांगी गई है.

संभावना है कि अगले महीने विशेषज्ञों का एक दल बस्तर आएगा और जगदलपुर के वन विद्यालय के पिंजरे में रखी पायल और नंदी पर शोध भी करेगा.

अशांत मैना
इसके अलावा उसेंडी का मानना है कि पिछले कई सालों के अनुभव के बाद ये समझ में आता है कि शहर के बीच बसा वन विद्यालय इन पक्षियों के संरक्षण की सही जगह नहीं है क्योंकि यहां या तो आते जाते वाहनों का शोर रहता है या फिर पास से गुज़रने वाली रेल गाड़ी का.

उसेंडी कहते हैं, "इसलिए मैंने अपने विभाग के अधिकारियों से कहा है कि कांकेर घाटी के जंगलों में ही पिंजरे को स्थानांतरित कर दिया जाए ताकि बस्तर की मैना को प्राकृतिक परिवेश मिल पाए और उसके प्रजनन में बाधा न पैदा हो सके. बहुत जल्द ही ऐसा हो जाएगा."

पिछले दस सालों में छत्तीसगढ़ की सरकार नें बस्तर कि मैना को संरक्षित करने के लिए काफी़ पैसा ख़र्च किया है. मगर इन सब के बावजूद अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि जगदलपुर वन विद्यालय के पिंजरे में रह रही दो मैनाओं में से कौन सा नर है और कौन सी मादा.

बहरहाल यह उम्मीद की जा रही है कि थाईलैंड के विशेषज्ञों के शोध के बाद बस्तर की मैना को संरक्षित करने में काफी़ मदद मिल सकती है.

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