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Saturday, January 16, 2010

चौथी दुनिया का मतलब

किसी भी नए अखबार को निकालने के लिए एक नाम की जरूरत होती है. नाम दिए जाते हैं और उस नाम को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं. अक्सर होता है कि पहले कोई भी नाम दे दिया जाता है, फिर उसका औचित्य सिद्ध करने के लिए तर्कों की कलाबाजियां खाई जाती हैं. हमारे साथ ऐसा नहीं है. हमने अपने अखबार का नामकरण यों तो नहीं कर दिया है और ना ही अब इस नामकरण का औचित्य सिद्ध करने के लिए यह संपादकीय लिख रहे हैं. आने वाले समय में अखबार अपना नाम खुद ही परिभाषित कर देगा. फिर भी, हम चाहते हैं कि अखबार का नाम चौथी दुनिया रखने के पीछे हमारे मन में जो बातें हैं, वे आप तक पहुंचें.

हम मानते हैं कि अपने जन्म से लेकर आज तक समाज का जो बंटवारा हुआ है, उसे हमेशा सत्ता, साहूकार और सिपाही ने परिभाषित किया है. आदिम समाज से चलकर कबीलाई, सामंती, पूंजीवादी और समाजवादी व्यवस्था में पहुंचे. इस मौजुदा समय चौथी दुनिया की दूसरी पारी के विशेषांक में पहरी पारी का पहला संपादकीयतक विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं को परिभाषित करने में जनता की कोई हिस्सेदारी नहीं रही है. इसका सिर्फ इस्तेमाल हुआ है. यही वजह है कि चाहे रेगन-गोर्बाचौव की पहली दुनिया हो या पश्चिम के विकसित औद्योगिक देशों के साहब-बहादुरों की दूसरी दुनिया या फिर राजीव गांधी, जयवर्द्धने, जिया-उल-हक, इरशाद आदि की तीसरी दुनिया. इनमें कहीं भी वह आदमी शामिल नहीं है, जो समाज का निर्माता तो है, नियंता नहीं है. उसके पास सिर्फ मेहनत है, आवाज नहीं, जिसका कोई मुल्क नहीं है. लेकिन सत्ता ने बेहद चालाकी से भूगोल की सीमा में कैद कर दिया है. इन तीनों दुनिया का अर्थ आज वहां की जनता के बजाय वहां की सरकारों में निहित हो गया है.

अपने अखबार का नाम चौथी दुनिया रखने के पीछे हमारी ईमानदार मंशा यह है कि इन तीनों दुनिया की सत्ता द्वारा जिन लोगों को जीवन के हाशिए पर धकेल दिया गया है, यह अखबार उनकी आशा-आकांक्षा, सुख-दुख, और उनके अपने संघर्ष का मंच बने. तीन दुनियाओं का मौजूदा नकली बंटवारा हमें इसलिए नामंजूर है क्योंकि इन दुनियाओं के सभी देशों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी अपनी आर्थिक इयत्ता, मर्यादा और गरिमा के लिए संघर्षशील है. संस्कृति के तल पर, जात या पात के आधार पर पैदा किए गए अल्पसंख्यक, औरत, बूढे, जवान और बच्चे अपनी ही सरजमीन पर हाथ-पाव गंवा बैठे हैं. रोजमर्रा की जरूरतों के लिए मर-खप रहे हैं. क्या दीन दुनियाओं के भीतर सांस लेती चौथा दुनिया की शक्ल ऐसी ही नहीं है. यही लोग चौथी दुनिया के नायक हैं. हम दुनिया के एक और नकली बंटवारे के हिमायती नहीं हैं, न ही तीन दुनियाओं के समानांतर हम कोई नई दुनिया खड़ी करना चाहते है. हम तो उन तमाम वंचित और सताए जा रहे लोगों की आवाज बनने के आकांक्षी हैं, जो अपने-अपने मुल्कों में कहीं पीछे छूट गए हैं. इन छूटे हुए लोगों का मंच है चौथी दुनिया. हमारी कोशिश रहेगी कि अपने हक और मर्यादा के लिए लड़ता हुआ आदमी इस अखबार में अपनी सच्ची तस्वीर देख सके और इसे अपने दुख-दर्द का भरोसामंद साथी समझ सके. किसी भी सही अखबार का इससे बड़ा मतलब और होता भी नहीं है

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