अपने अधिकारों का जान उनकी रक्षा करना है वीरता ज़ुल्मों को ना सहना पापी के आगे ना झुकना है वीरता देश की सीमा पे दुश्मन से लेना लोहा है वीरता जो सच है उसको ही कहना सच के सिवा कुछ ना कहना है वीरता सच के लिए लड़ना सच को साबित करना है वीरता अपनों की हर पल रक्षा करना है वीरता मासूम अबला की हिफाज़त करना है वीरता हर पल सिर को ऊँचा रखना केवल प्यार में झुकना है वीरता
hum hia jee

Sunday, April 11, 2010
नक्सलियों के अबतक के सबस
हम अपने ही लोगों के खिलाफ युद्व नहीं छेड़ सकते। यह बात केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने नक्सलियों के लिए कही थी। परंतु,आज जब नक्सलियों ने अबतक के सबसे बड़े नरसंहार को अंजाम दिया,जिसमें 73 केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान शहीद हो गये।चिदंबरम ने इस घटना को आश्चर्यजनक और दुखद बताया।उन्होंने यह भी कहा कि नक्सलियों के इस खूनी खेल ने माओवादियों की निरदयता और उनकी बढ़ी हुई क्षमता को दरशाती है। नक्सलियों ने सरकार के ऑपरेशन ग्रीन हंट को एक नहीं दो नहीं तीन बार झटका दिया है।15 फरवरी को नक्सलियों ने बंगाल के मिदनापोर जिले में ईस्टर्न राइफल्स के 24 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।। अभी दो दिन पहले ही,नक्सलियों ने उड़ीसा के कोरापुट जिले में 11 सुरक्षा कर्मियों को लैंडमाइन धमाके में मार गिराया था। और आज दंतेवाड़ा जिले के मुकराना के जंगल में घात लगाकर किये गये हमले में 73 सीआरपीएफ जवानों के साथ खून की होली खेली है।यह हमला केंद्र सरकार के नक्सलियों के प्रति रवैये पर सवालिया निशान उठाते हैं। साथ ही साथ ऑपरेशन ग्रीन हंट की पोल भी खोलता है। और कितनी जानों के बाद यह सिलसिला थमेगा। बहुत हो गया। अब वक्त आ गया है कुछ कडे कदम उठाने का। वरना इस समस्या का हल निकले वाला नहीं है। जो मारे गये है वो भी हमारे अपने ही थे।देश के छह जिलों में माओवादियों ने अपनी पैठ बना ली है। आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र को छोड़कर अन्य जगाहों पर बिहार,झारखंड,दक्षिण बंगाल और उड़ीसा में तो उनकी समानांतर सरकार चल रही है। सिर्फ इतना कह देना ही नक्सली समस्या देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा है, काम नही चलेगा। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक भारत के पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान नक्सलियों की मदद से देश में अस्थिरता पैदा करना चाहते हैं।चीन और पाकिस्तान से ही उन्हें आर्थिक मदद और आधुनिक हथियार मुहैया कराये जा रहे हैं। स्थिति और भी बिगड़ जाये, इससे पहले नक्सलियों को भी आतंकियों की तरह कुचलना होगा। इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों को एकजुट होकर कोई मजबूत कदम उठाना होगा। समय आ गया कि सरकार आर्मी को नक्सलियों का सफाया करने का जिम्मे देदे। सरकार को अब जवाब देना होगा की नक्सलियों के प्रति उसके रवैये में क्या बदलाव आयेगा। केद्र सरकार और उनके काबिल गृहमंत्री पी चिदंबरम अपने नक्सली विरोधी अभियान में फिलहाल तो पूरी तरह से असफल रहे हैं। नक्सली क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा कर्मियों में भी डर का माहौल है। उनके हौंसले को बढ़ाने के लिए,सरकार को माओवादियों के खिलाफ युद्व की घोषणा करनी ही होगी।
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